Bharat Ko Samajhane Ki Sharten by Suryakant Bali
तो? पीला यानी भगवा। रक्ताभ-पीत यानी भगवा। रक्त यानी भगवा। पीताभ-रक्त यानी भगवा। केसरिया यानी भगवा। फाग, बसंती रंग, होली का रंग, पकी-फसल का रंग, यानी भगवा। सूर्योदय का रंग भगवा। यज्ञ की अग्नि का रंग भगवा। कश्मीर यानी केसर का रंग भगवा। यह भगवा रंग अपने स्वभाव से जुड़ा हुआ है। पिछले दस हजार साल से जुड़ा हुआ है। हमने तो इसकी सिर्फ राजनीतिक व्याख्या भर की है। धर्मनिरपेक्षता की मार खाए और पिछले कुछ दशकों में उस मार से कराहते लोगों को ‘भगवा’ शब्द से परेशानी होती हो तो हुआ करे। धर्मनिरपेक्ष कोड़ों की मार से कराहते बेबस बुद्धिजीवियों की इस काँपती-कराहती हुई आवाज को क्या सुनना हुआ? हमारी ये सभी पंक्तियाँ, ये सभी पृष्ठ ऐसे कराहते लोगों को समझाने की कल्याण भावना से ही लिखे गए हैं। दशकों से कराह रहे बुद्धिजीवी सदियों से उपलब्ध इस औषध को न लेना चाहें तो कोई क्या कर सकता है। पर इसकी वजह से देश नहीं रुक जाएगा। दस हजार साल से देश अपने हाथ में भगवा पताका उठाए ही चल रहा है। भविष्य में भी देश यही करता रहेगा, उसमें किसी को कोई शक है क्या? गंगा को गंगासागर से मिलने से कोई रोक पाया है?
Publication Language |
Hindi |
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Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
SURYAKANT BALI |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2016 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789351868507' |
Publication Category |
General Reading Books |
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